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क्यों होता है गोलीबारी मौत और खूनी खेल… पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान क्यों इतनी हिंसा हो रहा है जानिए इतिहास¿?

बंगाल हिंसा


क्यों होता है गोलीबारी मौत और खूनी खेल… पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान क्यों इतनी हिंसा हो रहा है जानिए इतिहास¿?

 

लोकसभा चुनाव के फर्स्ट पेज में शुक्रवार को 21 राज्यों की 102 सीटों पर वोटिंग हुई बंगाल को छोड़कर सभी सीट पर शांतिपूर्वक मतदान हुआ। पश्चिम बंगाल में हिंसा के बीच 77.57 वोटिंग हुई और चुनाव आयोग को 450 से अधिक शिकायत मिली। अभी राज्य की तीन लोकसभा सीट के लिए वोट डाले गए हैं अभी 39 सीटों के लिए मतदान होना बाकी है। निर्वाचन आयोग के लिए चिंता का विषय है कि तीन लोकसभा क्षेत्र में उद्योग सैनिक बलों की 138 कंपनी और 10000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात थे। दूसरे चरण में तीन लोकसभा सीट ऑन दार्जिलिंग और बालूरघाट सीट के लिए मतदान होगा तीसरी पेज में नागपुर ,मुर्दाबाद,मालदा नॉर्थ और मालदा साउथ सीट के लिए वोटिंग होगी। मुर्शिदाबाद चुनाव हिंसा के लिए काफी बदनाम रहा है। इसके बाद के चार चरण में 78 लोकसभा सीट पर मतदान होगा या नहीं निर्वाचन आयोग की चुनौती और बढ़ेगी क्योंकि पश्चिम बंगाल में वोटिंग के दौरान बंगाल की गोलीबारी ,और मारपीट का इतिहास 5 दशक पुराना है

राजनीति की हत्या का दौरा 70 दशक में ही शुरू हो गया था
निर्वाचन आयोग ने 1989 में सांसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन के बाद बीएम का चुनाव में इस्तेमाल शुरू हुआ। 1998 में निर्वाचन आयोग कौन है इबिएम से पूरी देश में वोटिंग होने लगी। इसके बाद सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी ईवीएम से होने लगे और चुनाव भी हिंसा की घटनाएं कम होने लगे। 8090 के दशक में चुनावी हिंसा के मशहूर बिहार उत्तर प्रदेश आशा मोरपुर पत्थर में बीएम के कारण वोटिंग के दिन उपद्रव कम हुई, मगर पश्चिम बंगाल में वह रवायत चलती रहे। 1971 में सिद्धार्थ शंकर के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ राजनीतिक हत्याओं का खेल समय के साथ बढ़ता रही गए। नक्सलबाड़ी आंदोलन और 1979 की सुंदरबन में बांग्लादेश से हुआ हिंदू शरणार्थियों की हत्या से शुरू हुआ खूनी खेल कभी खत्म नहीं हुआ। राजनीतिक एक्सपोर्ट भी ही मानते हैं कि लेफ्ट फ्रंट के 34 शासन के दौरान राजनीतिक का हिस्सा खनन से जुड़ गए और हत्याओं की खूनी जंग में बचत की लड़ाई शुरू हुई। करीब दो दशक तक इस हिंसा ने बम डाल और कांग्रेस के काज्य आपस में भिड़ाते रहे

1998 से होने लगी टीएमसी और वामपंथी दलों के बीची महाभारत

1998 में तृणमूल और कांग्रेस से उदय होने के साथ पश्चिम बंगाल की राजनीति करवट लेने लगी। राजनीतिक और चुनावी हिंसा का नया दौर शुरू हो गया। पंचायत में टीएमसी के बर्थडे प्रभाव के कारण बाम दल और टीएमसी के बढ़ते प्रभाव के कारण बम डालो और टीएमसी काज्यकर्त्ता आपस में भिड़ते रहे। एनसीईआरटी के मुताबिक पिछले 10 में हर साल 20 राजनीतिक हिंसा में मारे गए। 2009 में सरकार आंकड़े में 50 से अधिक लोग मारे गए। 2008 में तू अनमोल कांग्रेस ने पंचायत में जीत हासिल की। और बंदर लोगों को 3 साल बाद राज्य की सत्ता से बेदखल कर दिया। राज्य में टीएमसी सत्ता में आए मगर चुनावी हिंसा का दौरा नहीं थम। पंचायत पर कब्जा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत की गारंटी बन गई। इस कारण पंचायत चुनाव में सबसे अधिक बैलेट बॉक्स में स्याही डालने और गोलीबारी और हत्या की खबरें आती रहे। वायलेट से चुनाव होने के कारण सबसे अधिक मौत पंचायत चुनाव में हुई। 2023 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में 12 और 2018 में 10 लोग मारे गए थे। पिछले साल इसके तालाब करीब 25 लोग राजनीतिक रंजीत में मर गए थे।
मारपीट की तस्वीर वायरल हुआ है

2014 तक पश्चिम बंगाल में पीएमसी और लेफ्ट की आमने-सामने से रहे। 2017 के बाद भाजपा की ताकत बढ़ने लगी तो राजनीतिक लड़ाई के वीर्य बदल गए। 2019 में बीजेपी ने 18 लोकसभा सीट जीतकर सबको चौका दिया है। ग्रामीण स्तर बीजेपी के कार्यकर्ता नजर आने लगे। टीएमसी के विरोधी भाजपा के घूम में इकट्ठा होने लगे। 2018 में बीजेपी ने आरोप लगाया कि टीएमसी के हमले में विपक्ष के 45 से अधिक कार्य करता है हमारे गए। टीएमसी ने भी बीजेपी पर हमले का आरोप लगाया। बीजेपी का आरोप है कि 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान 40 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। वह मुद्दा कोर्ट तक पहुंचा काला कुत्ता हाईकोर्ट में चुनावी हिंसा की जांच सीबीआई को सौंप दिए। 2024 के लोकसभा चुनाव में त्रिकोण मुकाबला हो रहा है। बीजेपी लेफ्ट कांग्रेस गठबंधन और टीएमसी के बीच टक्कर है। सभी दल एक दूसरे के वीडियो वायरल कर रहे हैं, जिम एमआरपी चुनाव कार्यालय में तोड़फोड़ और मारपीट के विजुअल है। निर्वाचन आयोग ने सुरक्षा बलों की तैनात की है मगर हिंसा रुकने उसके लिए बड़ा चैलेंज है।

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